गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

शनि का प्रकोप

शनि का प्रकोप
विजय रांगणेकर

उसका समय काफी खराब चल रहा था. निरंतर बीमारी और आर्थिक तंगी ने उसे काफी परेशान कर रखा था. सभी उपाय व उपचार बेकार रहे और वह निराश हो चला था, तभी उसकी मुलाकात एक स्वामीजी से हुई जो पूजा पाठ के साथ ही ज्योतिष मे भी दखल रखते थे. स्वामीजी ने उसकी स्थिति और् समस्या का अध्ययन करने के पश्चात् उस पर शनि का प्रकोप होना बताया. उसने स्वामीजी से शनि के प्रभाव से मुक्त होने का उपाय जानना चाहा. स्वामीजी बोले “ मै अपने पूजा पाठ के प्रभाव से शनि के दुषप्रभाव को नष्ट कर दूंगा, परंतु इस प्रक्रिया मे लगभग एक हजार रूपए का खर्च आएगा.
उसने कहा “मेरे पास तो एक हजार रूपए नही है” तब स्वामीजी बोले कि यदि कम रूपए भी होंगे तो कार्य सम्पन्न करा दूंगा, तुम सात सौ रूपए का इंतजाम कर लो. उसने फिर कहा “ मेरे पास् तो सात सौ रूपए का भी जुगाड नही है”. उसकी आर्थिक स्थिति पर तरस खाते हुए व स्वामीजी पांच सौ, तीन सौ, एक सौ से उतरते हुए पचास रूपए पर आए. परंतु उसने पचास रूपए जुटा पाने मे भी अपनी असमर्थता व्यक्त की.
आखिर अपने भक्त को निराश नही लौटने देने व हाथ आए शिकार को नही छोडने के लिहाज से स्वामीजी बोले “अच्छा, तुम पांच रूपए दे दो, मै शार्टकट मे पूजा निपटा देता हू. वह बोला कि मेरे पास तो पांच रूपए भी नही है. तब स्वामीजी बोले “फिर तुम निश्चिंत्त होकर रहो. तुम्हे किसी पूजा पाठ की जरूरत नही है. जिसके पास पांच रूपए भी नही हो उसका तो शनि भी कुछ नही बिगाड सकता”

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